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Monday, November 25, 2013

भ्रम निवारण का उपाय

भ्रम कई प्रकार के होते है
 व्यक्ति का स्वयम कि क्षमता के बारे में भ्रम होना 
स्वयम को अति क्षमतावान और बुध्दिमान मान लेने का भ्रम 
दूसरे व्यक्तियो कि क्षमताओ को अधिक या अल्प 
मान लेने का भ्रम 
दोनों प्रकार के भ्रम का निवारण होना आवश्यक है 
रामायण में जब सीता  जी कि खोज हेतु 
वानर सेना सहित श्रीराम हनुमान लक्ष्मण 
सुग्रीव अंगद सिंधु के किनारे किंकर्त्तव्य  विमूढ़  अवस्था में बैठे थे 
तब यह ज्ञात होने पर कि लंका जो उस पार है
 रावण ने सीता जी  को वहा 
अशोक वाटिका में बंधक बना रखा है 
समुद्र कि चौड़ाई ज्ञात होने पर कि
 समुद्र शत योजन अर्थात चार सौ कोस है 
जांबवान को अपनी वृद्धावस्था को देखते हुए
 समुद्र लांघ जाने में विफल होने का भ्रम था 
अंगद को मात्र अपनी क्षमता को अल्पता  का भ्रम था 
परन्तु हनुमान जी जो न तो अधिक उतावले थे 
और न ही किंकर्त्तव्य विमूढ़ को किसी 
प्रकार का भ्रम नहीं था 
परन्तु हनुमान जी कि क्षमता पर सभी लोगो को विश्वास था 
ऐसे क्षमतावान पराक्रमी पर
  विश्वास  व्यक्त करने का ही परिणाम ही था
 कि सीता रूपी लक्ष्य कि प्राप्त कर सके
आशय यह है जहा भ्रम  रहता है वहा सफलता प्राप्त नहीं होती 
सीता रूपी लक्ष्य तभी प्राप्त होता है 
जहा भ्रम  विहीन विश्वास  से युक्त ऐसी क्षमता विदयमान हो  
जिसे प्रभु राम जैसे ईश का आशीष प्राप्त हो  
इसलिए हनुमान जी के  स्मण  मात्र से सारे भ्रम दूर हो जाते है 

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