भ्रम कई प्रकार के होते है
व्यक्ति का स्वयम कि क्षमता के बारे में भ्रम होना
स्वयम को अति क्षमतावान और बुध्दिमान मान लेने का भ्रम
दूसरे व्यक्तियो कि क्षमताओ को अधिक या अल्प
मान लेने का भ्रम
दोनों प्रकार के भ्रम का निवारण होना आवश्यक है
रामायण में जब सीता जी कि खोज हेतु
वानर सेना सहित श्रीराम हनुमान लक्ष्मण
सुग्रीव अंगद सिंधु के किनारे किंकर्त्तव्य विमूढ़ अवस्था में बैठे थे
तब यह ज्ञात होने पर कि लंका जो उस पार है
रावण ने सीता जी को वहा
अशोक वाटिका में बंधक बना रखा है
समुद्र कि चौड़ाई ज्ञात होने पर कि
समुद्र शत योजन अर्थात चार सौ कोस है
जांबवान को अपनी वृद्धावस्था को देखते हुए
समुद्र लांघ जाने में विफल होने का भ्रम था
अंगद को मात्र अपनी क्षमता को अल्पता का भ्रम था
परन्तु हनुमान जी जो न तो अधिक उतावले थे
और न ही किंकर्त्तव्य विमूढ़ को किसी
प्रकार का भ्रम नहीं था
परन्तु हनुमान जी कि क्षमता पर सभी लोगो को विश्वास था
ऐसे क्षमतावान पराक्रमी पर
विश्वास व्यक्त करने का ही परिणाम ही था
कि सीता रूपी लक्ष्य कि प्राप्त कर सके
आशय यह है जहा भ्रम रहता है वहा सफलता प्राप्त नहीं होती
सीता रूपी लक्ष्य तभी प्राप्त होता है
जहा भ्रम विहीन विश्वास से युक्त ऐसी क्षमता विदयमान हो
जिसे प्रभु राम जैसे ईश का आशीष प्राप्त हो
इसलिए हनुमान जी के स्मरण मात्र से सारे भ्रम दूर हो जाते है
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