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Friday, January 31, 2014

कर्मयोगी

व्यक्ति कितना ही ईमानदार हो कितना ही विरक्त हो 
वह सभी प्रकार के मोह त्याग सकता है 
पद और यश के मोह से मुक्त नहीं हो सकता 
सन्यासी  हो चाहे सामान्य व्यक्ति 
कौन व्यक्ति पद कि आकांक्षा नहीं रखता 
कौन व्यक्ति नहीं चाहता कि 
निरन्तर  उसका यश प्रकाशित होता रहे 
इतिहास के पृष्ठों पर उसका नाम सुशोभित हो 
संन्यास धारण करने पर भी व्यक्ति 
संत महंत मंडलेश्वर महामंडलेश्वर शंकराचार्य 
गिरी पुरी  कि और अग्र  सर होने कि कर्मरत रहता है 
सामान्य व्यक्ति भी एक ही दशा में न रहते हुए 
वर्त्तमान स्थिति से उत्तम स्थिति कि प्राप्त करना चाहता है 
सामाजिक क्षैत्र में कार्य करने वाले समाज सेवी भी 
लोकेषणा कि भावना तो रखते ही है 
लोकेषणा की  भावना से मुक्त होना 
हर किसी के लिए सम्भव  नहीं है 
उपरोक्त परिस्थितियो में भी वर्त्तमान में ऐसे व्यक्ति 
जो किसी पद या किसी यश कि अपेक्षा  किये बिना
समाज के विभिन्न क्षैत्रो में कर्म रत है 
ऐसे व्यक्ति भी विदयमान है 
स उन्हें देखने परखने कि दृष्टि हमारी होनी चाहिए
वास्तव में कर्मयोगी है सच्चे सन्यासी है
 पूरी निष्ठा से कर्म करने के बावजूद 
वे कोई भी श्रेय व् पद लेने कि इच्छा नहीं रखते है 
ऐसे मौन साधको मौन तपस्वियों  सच्चे कर्मयोगियों 
के कारण ही हमारा समाज और देश उपकृत हो सकता है

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