दूसरे व्यक्ति के परिश्रम धन और समय का मूल्य वह व्यक्ति ही समझ सकता है जो स्वयं परिश्रमी और समय का पाबन्द हो दुसरो को ईमानदारी का पाठ पढाने वाला स्वयं ईमानदारी से कार्य करे तो उसका मार्गदर्शन महत्वपूर्ण है अन्यथा वह मात्र उपदेश ही रह जाता है जीवन में जिसने पुरुषार्थ से कुछ भी नहीं पाया उसके मुख से त्याग की बाते अच्छी नहीं लगती
सभी सुख सुविधाये विद्यमान रहते अभावो रहने का अभ्यास सच्चा वैराग्य है स्वास्थ्य अच्छा रहने के बावजूद अल्प आहार ग्रहण करना भी व्रत के सामान है स्वास्थ्य खराब होने पाचन तन्त्र अनियमित होने जो व्रत करे वह व्रत उपवास न होकर उपचार है जैसे कोई व्यक्ति एक दिन के व्यायाम से पहलवान नहीं बन जाता उसी प्रकार कोई व्यक्ति क्षणिक अध्धयन से विद्वान नहीं बनता निरंतर अभ्यास किसी भी क्षेत्र में पूर्णता प्राप्त करने के लिए अभ्यास करना आवश्यक है
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Thursday, November 26, 2015
जीवन के सूत्र
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