सुंदरता देह में नहीं व्यक्तित्व में होती है
सुंदरता उसे दिखाई देती है
सुंदरता उसे दिखाई देती है
जिसे सौंदर्य का बोध होता है
सौंदर्य के कई मानदंड हो सकते है
कलात्मक सौंदर्य
गुणात्मक सौंदर्य
गुणात्मक सौंदर्य
भावात्मक सौंदर्य और दैहिक सौंदर्य
सौंदर्य बोध से विहीन व्यक्ति की
सौंदर्य बोध से विहीन व्यक्ति की
दृष्टि मात्र दैहिक सौंदर्य को ही देख पाती है
जहा सौंदर्य की दृष्टि दैहिक होती है
अश्लीलता वही से आरम्भ होती है
अश्लीलता वही से आरम्भ होती है
जब तक हम अपने सौंदर्य बोध को
समुन्नत नहीं कर पाऐगे
स्वयं को अश्लीलता के प्रदूषण से
मुक्त नहीं कर पायेगे
सौंदर्य बोध से दृष्टि सम्पन्न व्यक्ति
जब सौंदर्य को कलात्मक दृष्टि से देखता है
तो वह रचनात्मक प्रवृत्ति की और अग्रसर होता है कभी उसकी रचनात्मक वृत्ति
चित्रकार के रूप में प्रकट होती है
तो कभी गीत और संगीत के रूप में
अभिव्यक्त होती है
भावात्मक सौंदर्य बोध व्यक्ति को
भक्ति और उपासना मार्ग की और अग्रसर करता है कभी वह नारी के सौंदर्य में प्रेयसी के रूप में
राधा जी के दर्शन करता है
तो कभी माँ के रूप में जगदम्बा से
साक्षात्कार करता है
बालसुलभ सौंदर्य में श्रीकृष्ण से
स्वयं को निकट पाता है
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