कहते है संत का स्वभाव सरल होता है
सरल स्वभाव से परिपूर्ण व्यक्ति को
अल्प साधना में ही
सरल स्वभाव से परिपूर्ण व्यक्ति को
अल्प साधना में ही
ईष्ट की कृपा प्राप्त हो जाती है
जिसका स्वभाव सरल नहीं हो
भले वह संन्यास धारण कर ले
जिसका स्वभाव सरल नहीं हो
भले वह संन्यास धारण कर ले
संत नहीं हो सकता है
हर वह व्यक्ति संत है जिसका स्वभाव सरल है
चाहे उसने सांसारिक जीवन का
हर वह व्यक्ति संत है जिसका स्वभाव सरल है
चाहे उसने सांसारिक जीवन का
त्याग नहीं किया है
प्रश्न यह उठता है
प्रश्न यह उठता है
सरल स्वभाव की कसौटी क्या है
सरल स्वभाव को किस प्रकार से परिभाषित
किया जा सकता है
जिस व्यक्ति के पास छुपाने लायक कुछ नहीं हो
जिसके भीतर की निश्छलता बाहर से
साफ़ साफ़ पढ़ी जा सके
सरल स्वभाव को किस प्रकार से परिभाषित
किया जा सकता है
जिस व्यक्ति के पास छुपाने लायक कुछ नहीं हो
जिसके भीतर की निश्छलता बाहर से
साफ़ साफ़ पढ़ी जा सके
वह सरल है
उसका स्वभाव निर्मल जल की तरल है
सरल स्वभाव के व्यक्तियो को मुर्ख समझना
सबसे बढ़ी मूर्खता होगी
ऐसा नहीं है कि
उसका स्वभाव निर्मल जल की तरल है
सरल स्वभाव के व्यक्तियो को मुर्ख समझना
सबसे बढ़ी मूर्खता होगी
ऐसा नहीं है कि
सरल व्यक्ति दूसरे के मंतव्यों को न पढ़ सके
सरलता के बल पर
सरल व्यक्ति सूक्ष्म अनुभूतियों का स्वामी होता है इसलिए उसकी संवेदनाये प्रखर होती है
वह सीघ्र ही दुष्ट व्यक्ति और उसके मंतव्यों को
पहचान लेता है
जीवन में सरलता का सुख जिसने पाया है
उसे वैराग्य धारण करने की
आवश्यकता भी नहीं रहती
वह तो सहज वैरागी
भगवद सत्ता का सहज अनुरागी होता है
सरलता महानता की पहली कसौटी है
जो भीतर से पावन है वह सरल है
जो भीतर से प्रसन्न है वह सरल है
इसलिए सरलता मार्ग ही सर्वोत्तम है
सरल व्यक्ति के सारे कार्य सरलता से
निष्पादित हो जाते है
जीवन के जटिल से जटिल प्रश्नो के समाधान
उसे सरलता से प्राप्त हो जाते है
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