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Saturday, March 12, 2016

लोकतंत्र से राजतंत्र तक

सत्ता  के शीर्ष से
 अव्यवस्था दिखाई नहीं देती है
सत्ता के आस पास जो आभा मंडल होता है
वह शासक को वास्तविकता देखने ही नहीं देता है
सत्ता पर बैठते ही व्यक्ति पर 
अहंकार सवार हो जाता है
बहुत से सत्ताधीशो को देखा है 
जो किसी जमाने में जिन मुद्दो के लिए संघर्ष रत थे
सत्ता के शीर्ष पर बैठते ही 
उनकी प्राथमिकताएं बदल गई
सत्ता शोषण का प्रतीक तब बन जाती है
 जब शासक निज सुखो को 
अधिक महत्व देने लगता है
प्राचीनकाल में अच्छे शासक वेश बदल कर जनता के बीच उनके सुख दुःख देखने चले जाते थे
वर्तमान में सुरक्षा  चक्र के नाम पर 
शासक जनता से दूर हो चुके है
निर्वाचित होते ही जनता की 
समस्याओ से पूरी तरह कट जाते है
क्षुद्र और निहित स्वार्थ साधना में लिप्त हो जाते है
उच्च शब्दावलियों में लम्बे व्याख्यान 
भ्रांतिपूर्ण नारेबाजी में उलझकर कोई भी 
लोकतांत्रिक प्रक्रिया से निर्वाचित नेता 
खुशामदी किस्म के व्यक्तियों के 
पाखंडपूर्ण महिमामंडन से गौरवान्वित हो
 आत्ममुग्ध हो जाता है 
और यही से उसके पतन की शुरुआत होती है 
 

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