ज्ञान - विद्या और ज्ञान यह दोनों भले ही एक लगे परन्तु यह दोनों है अलग - अलग यह अवश्य हे कि यह दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हे परस्पर जुड़े हुए पर एक नही
विद्या को प्राप्त किया जाता है और ज्ञान का उपयोग विद्या का परिणाम ज्ञान हे दोनों में बहुत सूक्ष्म भेद हे ज्ञान व्यक्ति को मनुष्य बनाने वाली वह शक्ति हे जिसके उपयोग से मनुष्य स्वयं अपना और विश्व का कल्याण करने का सामर्थ्य रखता हे विद्या ग्रहण कर उससे उत्पन्न ज्ञान का उपयोग कर मनुष्य बहुत सकारात्मक प्रभाव पैदा कर सकता हे जो मनुष्यता को नई ऊँचाईया देने मे सक्षम है
विद्या को प्राप्त किया जाता है और ज्ञान का उपयोग विद्या का परिणाम ज्ञान हे दोनों में बहुत सूक्ष्म भेद हे ज्ञान व्यक्ति को मनुष्य बनाने वाली वह शक्ति हे जिसके उपयोग से मनुष्य स्वयं अपना और विश्व का कल्याण करने का सामर्थ्य रखता हे विद्या ग्रहण कर उससे उत्पन्न ज्ञान का उपयोग कर मनुष्य बहुत सकारात्मक प्रभाव पैदा कर सकता हे जो मनुष्यता को नई ऊँचाईया देने मे सक्षम है
शील - इस एक ही शब्द में दो गुणों का सामूहिक समावेश है पहला है चरित्र यह वह गुण है जो व्यक्ति को मात्र मनुष्य ही नही एक श्रेष्ठ मनुष्य बनाता हे चरित्र ही मनुष्य की संचित एकमात्र सम्पति हे जो यद्दपि भौतिक सुख नही क्रय कर सकती परन्तु व्यक्ति को हजारों धुली - कणों के मध्य प्रकाशित रत्न के रूप में आलोकित करने में सक्षम हे चरित्र से मनुष्यता आती हे यह व्यक्ति को वह शक्ति देता हे जो उसे विकट परिस्थितियों मे भी विचलित नहीं होने देता
दूसरा हे विनम्रता यह मनुष्य का आभूषण हे विनम्रता से मनुष्य लोकपूजक बन जाता है अहंकार मनुष्य का क्षत्रु हे विनम्रता से अहंकार का नाश हो जाता हे और मनुष्य सदैव के लिए आत्मशातिं (inner peace)
को प्राप्त हो जाता है
शेष .........
दूसरा हे विनम्रता यह मनुष्य का आभूषण हे विनम्रता से मनुष्य लोकपूजक बन जाता है अहंकार मनुष्य का क्षत्रु हे विनम्रता से अहंकार का नाश हो जाता हे और मनुष्य सदैव के लिए आत्मशातिं (inner peace)
को प्राप्त हो जाता है
शेष .........
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