इस कहानी संग्रह में में जहाँ तिब्बती शरणार्थियों की पीड़ा को "भूगोल के दरवाजे "के माध्यम से व्यक्त किया गया है । वही "कातिल की बीवी "दरिद्रता और अभावो और सँकरी गलियों में रहने वाले दो परिवारों के आपसी जुड़ाव और मन मुटाव को बयाँ करता है । जहां एक और विशाल भू भागो पर रह कर भी कुछ लोग अतृप्त है । वही भिन्न धर्मो के दो निर्धन परिवार किस प्रकार से एक एक इंच जमीन के लिए संघर्षरत है ।दोनों परिवार के पुरुषों में चाहे कितना भी द्वेष हो महिलाओ में आत्मीय जुड़ाव की यह कथा है
"जंगल मे चोरी "आदिवासी अंचल चल रहे विकास की कथा है ।जिसमे सीमेंट के गोदाम ठेकेदार और मूल निवासियों को वस्त्र प्रदान किये जाने का रोचक उल्लेख है । एक दिन शासन की और से वस्त्र वितरणकर्ता किराने वाला दुकान बंद कर लम्बे समय के लिए चला जाता है तो आदिवासी ठंड को दूर करने के लिए सीमेंट की खाली पड़ी बोरियो की चोरी करते है ।उनके लिए सीमेंट का कोई मूल्य नही होता ।यह एक करारा व्यंग्य भी है
"बीते समय शहर "की कहानी अतीत के पन्नो को पलटने की कहानी है । प्रेमिका के बहाने ट्रैन में यात्रारत युवक एक ऐसे शहर और उससे जुड़ी स्मृतियों को याद करता है । जहां उसने शैक्षणिक काल मे समय गुजारा था। शहर के पास खड़े पहाड़ को बुजुर्ग की उपमा देकर लेखक जब कहता है ।बुजुर्ग हमारे लिये उपयोगी हो या न हो उनकी उपस्थिति मात्र आश्वस्त करती है कि हमारे कंधे पर किसी का हाथ है । बीते शहर की कहानी का सम्मोहन अदभुत है । लेखक ने कहानी को बहुत ही सूक्ष्मता से उंकेरा है यात्रा को विविध आयाम और स्वरूप प्रदान किये है यह कहना अतिश्योक्ति नही होगी कि लेखक की सम्पूर्ण से प्रतिभा इस कहानी के माध्यम से हम परिचित हो जाते है
और अंत मे "दवा सांझेदारी और आदमी" नामक शीर्षक कहानी के माध्यम से लेखक ने दवा विक्रेता और ग्राहक के बीच हुए संवाद को बेहतरीन तरीके से विषय को अभिव्यक्त किया है व्यवसायिक मजबूरिया और पेट की भूख के सामने इंसान कितना विवश हो जाता है । आदर्शो की बात करना आसान है जीना कितना मुश्किल है
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