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Saturday, July 6, 2013

दान से धन की शुध्दि

 जब हम यह कहते है दान से धन की शुध्दि होती है 
तब यह भी प्रतिध्वनित होता है की
 अशुध्द साधनों से अर्जित धन भी दान योग्य हो सकता है
 इस प्रकार के विचार से 
धर्म और समाज सेवा के क्षेत्र में  
ऐसे धन के  दान की प्रवृत्ति बदती है 
जो शोषण और अपराध  द्वारा अर्जित किया गया हो 
तब धर्म और समाज सेवा क्षेत्र में इस प्रकार की घटनाएं होने लगती है जो पहले न तो कभी पढ़ी और न कभी सुनी थी
 इसलिए इस दृष्टि कोण में बदलाव आवश्यक है 
अन्यथा धर्म और समाज सेवा के क्षेत्र में
 कालेधन का प्रवेश होता जाएगा 
ऐसी स्थिति में धर्म व्यवसाय का रूप धारण कर लेगा
 वर्तमान में धार्मिक क्षेत्र में हो रहे पतन का कारण 
इसी प्रकार की व्यवसायिक प्रवृत्ति है 
यदि हमें धर्म को बचाना है तो 
इस मानसिकता पर अंकुश लगाना होगा 
और  दान में ऐसे धन को ही बढ़ावा देना होगा 
जो शुध्द हो पवित्र हो 
शास्त्रों में दान को यग्य  की संज्ञा दी गई है 
यग्य में जो द्रव्य के रूप में  घृत की अवस्था होती है 
वही अवस्था दान में धन की होती है 
यग्य में अशुध्द घृत का प्रयोग नहीं किया जा सकता 
तो फिर दान में अशुध्द साधनों से अर्जित धन को 
कैसे लिया जा सकता है 

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