जब हम यह कहते है दान से धन की शुध्दि होती है
तब यह भी प्रतिध्वनित होता है की
अशुध्द साधनों से अर्जित धन भी दान योग्य हो सकता है
इस प्रकार के विचार से
धर्म और समाज सेवा के क्षेत्र में
ऐसे धन के दान की प्रवृत्ति बदती है
जो शोषण और अपराध द्वारा अर्जित किया गया हो
तब धर्म और समाज सेवा क्षेत्र में इस प्रकार की घटनाएं होने लगती है जो पहले न तो कभी पढ़ी और न कभी सुनी थी
इसलिए इस दृष्टि कोण में बदलाव आवश्यक है
अन्यथा धर्म और समाज सेवा के क्षेत्र में
कालेधन का प्रवेश होता जाएगा
ऐसी स्थिति में धर्म व्यवसाय का रूप धारण कर लेगा
वर्तमान में धार्मिक क्षेत्र में हो रहे पतन का कारण
इसी प्रकार की व्यवसायिक प्रवृत्ति है
यदि हमें धर्म को बचाना है तो
इस मानसिकता पर अंकुश लगाना होगा
और दान में ऐसे धन को ही बढ़ावा देना होगा
जो शुध्द हो पवित्र हो
शास्त्रों में दान को यग्य की संज्ञा दी गई है
यग्य में जो द्रव्य के रूप में घृत की अवस्था होती है
वही अवस्था दान में धन की होती है
यग्य में अशुध्द घृत का प्रयोग नहीं किया जा सकता
तो फिर दान में अशुध्द साधनों से अर्जित धन को
कैसे लिया जा सकता है
यग्य में जो द्रव्य के रूप में घृत की अवस्था होती है
वही अवस्था दान में धन की होती है
यग्य में अशुध्द घृत का प्रयोग नहीं किया जा सकता
तो फिर दान में अशुध्द साधनों से अर्जित धन को
कैसे लिया जा सकता है
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