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Sunday, August 4, 2013

अभय भाव और वेद

विश्व में शत्रुओ के शमन दमन स्तम्भन 
उच्चाटन मारण  के कितने ही मंत्र है
 कितनी  ही विधिया है कितने ही विधान है 
यहाँ तक की अहिंसा के सिध्दांत पर आधारित
जैन धर्म में में भी प्रमुख मन्त्र ॐ नमो अरिहंताणं ही है 
तंत्र विद्या में कितनी देवी देवताओं की स्तुतिया
शत्रुओ के सर्वनाश के लिए साधको द्वारा की जाती है 
परन्तु व्यवहारिक  जगत में यह देखने में आता है
 की व्यक्ति किसी व्यक्ति शत्रु  मानता है 
यथार्थ में शत्रु कोई और भी हो सकता है 
हम जिसके अनिष्ट की कामना करते है 
उसके स्थान पर ऐसे व्यक्ति का अनिष्ट हो जाता है 
जिसे हम अपना परम हितैषी समझते  है
वास्तव देखा जाए तो हमारी स्थूल दृष्टि 
 शत्रु और मित्र में भेद ही नहीं कर सकती हमें किससे अभय चाहिए
इस विषय पर  अथर्ववेद  का  मन्त्र स्पष्ट करता है
अभयं  मित्रादभयममित्रादभयम ज्ञाताद अभयं परोक्षात अभयं नक्तं भयं दिवां न सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु 
अथर्व. १९\१५\6
अर्थात हे भगवान हमें अभय प्रदान करो 
मित्रो से अमित्रो से अभय प्रदान करो 
हम जिनको जानते है उनसे अभय प्रदान करो 
हम जिनको नहीं जानते है उनसे भी हमें प्रदान करो 
तथा सभी और हमारे मित्र हो
मित्रता पूर्ण वातावरण से हम घिरे हो

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