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Wednesday, October 16, 2013

महान तपस्वी महर्षि अगस्त्य

महर्षि अगस्त्य महान तपस्वी थे कहा जाता है 
की उन्होंने अपने तपोबल के द्वारा 
अपने आश्रम की सीमाओं को बाँध रखा था 
महर्षि अगस्त्य की अनुमति के बिना कोई भी निशाचर 
उनके आश्रम में प्रवेश नहीं कर सकता था 
महर्षि अगस्त्य विन्ध्याचल के गुरु थे 
एक बार विन्ध्याचल पर्वत निरंतर 
अपनी उंचाई बढाता जा रहा था 
निरंतर ऊंचाई पाने के कारण 
सृष्टि में अन्धकार छाता जा रहा था 
जीव जंतु व्याकुल होते जा रहे थे
विन्ध्याचल पर्वत की ऊंचाई रोकने के सारे प्रयास विफल हो गए थे उस समय देवताओं के आग्रह पर
 लोक कल्याण के हित में महर्षि अगस्त्य 
जो उत्तर भारत में निवास रत थे ने 
दक्षिण भारत की और प्रस्थान किया
 रास्ते में उनका शिष्य विन्च्ध्याचल पर्वत 
निरंकुश गति से ऊंचाई ग्रहण करते हुए मिले 
महर्षि अगस्त्य ने विन्ध्याचल से रास्ता देने को कहा
 और वापस लौटने तक उसी स्थिति में रहने का आदेश दिया 
लोक कल्याण में महर्षि अगस्त्य दक्षिण भारत से 
वापस दक्षिण भारत से आज तक नहीं लौटे
 कहते है वह स्थान दतिया जिले में सेवढा  तहसील के समीप आधारेश्वर महादेव के निकट स्थित है 
 महर्षि अगस्त्य के बारे में कहा जाता है की 
उन्होंने लोक हित में समुद्र को पी लिया था 
जिसमे राक्षसों ने शरण ले रखी  थी
ऐसे महान तपस्वियों की तपो भूमि हमारा देश रहा है 
जहा उत्तरी भारत को योगियों की भूमि कहा गया है 
वही  दक्षिण भारत को तपस्वियों की तपो भूमि कहा जाता है 

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