महर्षि अगस्त्य महान तपस्वी थे कहा जाता है
की उन्होंने अपने तपोबल के द्वारा
अपने आश्रम की सीमाओं को बाँध रखा था
महर्षि अगस्त्य की अनुमति के बिना कोई भी निशाचर
उनके आश्रम में प्रवेश नहीं कर सकता था
महर्षि अगस्त्य विन्ध्याचल के गुरु थे
एक बार विन्ध्याचल पर्वत निरंतर
अपनी उंचाई बढाता जा रहा था
निरंतर ऊंचाई पाने के कारण
सृष्टि में अन्धकार छाता जा रहा था
जीव जंतु व्याकुल होते जा रहे थे
विन्ध्याचल पर्वत की ऊंचाई रोकने के सारे प्रयास विफल हो गए थे उस समय देवताओं के आग्रह पर
विन्ध्याचल पर्वत की ऊंचाई रोकने के सारे प्रयास विफल हो गए थे उस समय देवताओं के आग्रह पर
लोक कल्याण के हित में महर्षि अगस्त्य
जो उत्तर भारत में निवास रत थे ने
दक्षिण भारत की और प्रस्थान किया
रास्ते में उनका शिष्य विन्च्ध्याचल पर्वत
निरंकुश गति से ऊंचाई ग्रहण करते हुए मिले
महर्षि अगस्त्य ने विन्ध्याचल से रास्ता देने को कहा
और वापस लौटने तक उसी स्थिति में रहने का आदेश दिया
लोक कल्याण में महर्षि अगस्त्य दक्षिण भारत से
वापस दक्षिण भारत से आज तक नहीं लौटे
कहते है वह स्थान दतिया जिले में सेवढा तहसील के समीप आधारेश्वर महादेव के निकट स्थित है
महर्षि अगस्त्य के बारे में कहा जाता है की
उन्होंने लोक हित में समुद्र को पी लिया था
जिसमे राक्षसों ने शरण ले रखी थी
ऐसे महान तपस्वियों की तपो भूमि हमारा देश रहा है
ऐसे महान तपस्वियों की तपो भूमि हमारा देश रहा है
जहा उत्तरी भारत को योगियों की भूमि कहा गया है
वही दक्षिण भारत को तपस्वियों की तपो भूमि कहा जाता है
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