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Thursday, December 26, 2013

संन्यास और भक्ति

वृत्ति का सम्बन्ध व्यवसाय और कार्य से है 
प्रवृत्ति का सम्बन्ध स्व भाव से है 
निवृत्ति वह शब्द है जिसे पाकर मुक्त होना है
मुक्ति कहा है यहाँ 
हर तरफ चिंताये  और चिताये है 
भस्म तन को ही होना है  
विरक्ति में वैराग्य है त्याग है
भक्ति का सम्बन्ध समर्पण से है
समर्पण क्या त्याग से बड़ा है ?
त्याग से संन्यास है और समर्पण से भक्ति
संन्यास से मुक्ति है और भक्ति से शक्ति 
संन्यास में उपाय है और भक्ति निरुपाय है 
बिन उपाय सब कुछ भक्ति से ही मिलता है 
भक्ति में भावनाए है भावुक विव्ह्वीलता है
इसलिए हे मनुज तुम भक्त बनो 
रहो पूर्णतया  समर्पित न यूं ही विरक्त बनो

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