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Friday, January 3, 2014

अपेक्षा और उपेक्षा

हर कोई अपेक्षा रखता है कि 
उसकी अपेक्षाओ पर कोई खरा उतरे 
पर कोई भी व्यक्ति किसी की अपेक्षाओ पर
 खरा नहीं उतरना चाहता 
 व्यवहारिक जीवन में हम किसी व्यक्ति से 
इतनी अधिक अपेक्षाए संजो लेते है कि 
उनकी पूर्ती की जाना सम्भव नहीं होती है
 बहुत सी प्रतिभाये अपेक्षाओ का अधिक भार
 बर्दाश्त नहीं कर  पाती है  
 या  तो  अपनी स्वाभाविक क्षमता खो देती है 
या सदा के वह प्रतिभा दम तोड़ देती है 
अपेक्षाए अपनों से की जाती है
 अपेक्षा का सम्बन्ध अधिकार की भावना से होता है
 जिसे व्यक्ति अपना समझता है
 उस पर अपना अधिकार मानता है 
पर व्यक्ति जिस पर अपना अधिकार मानता है
 अपेक्षाए संजो लेने पर व्यक्ति 
सामने वाले व्यक्ति सीमाए और अधिकारिता ,
क्षमताये नहीं पहचानता है ऐसी अपेक्षाए हमेशा अतृप्त रहती है
अपेक्षाए टूटने पर व्यक्ति स्व यम को 
उपेक्षित महसूस करने लगता है 
इसलिए किसी भी व्यक्ति से अधिक अपेक्षाए मत रखो 
अपेक्षाए रखने के पूर्व व्यक्ति योग्यता 
कार्य कुशलता को भली -भाँती परखो 
व्यक्ति कि क्षमता के अनुपात में की गई 
अपेक्षाए सदैव पूर्ण होती है

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