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Saturday, May 23, 2015

रतिराम का प्रायश्चित्त

रतिराम एक अच्छी नोकरी  पा चूका था I
सुन्दर पत्नी दो नन्हे प्यारे बच्चे सरकारी मकान
और नई नवेली मोटर सायकिल खुशहाल जीवन
रतिराम के तीन भाई और थे रतिराम खर्च करने में बहुत उदार था 
परिवार का सबसे बड़ा भाई होने के नाते छोटे भाईयो  को आर्थिक रूप से स्वालम्बन बनाना वह अपना दायित्व समझता था | पिता अत्यंत निर्धन गाव के सीधे साधे व्यक्ति
मंदिर से घर घर से चाय की दूकान उनकी दिनचर्या बन चुकी थी |आखिर रतिराम जैसा कमाऊ पूत जो पाया था |
धीरे धीरे रतिराम का सारा ध्यान अपनी पत्नी बच्चों से हट सारा ध्यान अपने भाईयो की और चला गया |
आज बीस साल हो गए रतिराम बहुत खुश था |अपने सभी भाइयो को आत्म निर्भर देख कर भाइयो की पत्नी और बच्चों को खुशहाल देख कर पर अगर कुछ नहीं उसके पास तो वे उसके छोटे छोटे बच्चे जो हो गए थे बड़े बिना पिता के सरंक्षण के खो चूका था रतिराम अपनी पत्नी का स्नेह और बच्चों का सानिध्य ||बची थी रतिराम के पास प्रायश्चित्त कि वह भावना कि काश वह भी अपने बच्चों की और दे पाता तो उसने भी पाये होते कमाऊ पूत

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