अभाव दो प्रकार के होते है
एक तो वास्तविक अभाव
दूसरा कृत्रिम अभाव है
कृत्रिम अभाव वे होते है
जिनके रहते हमारा जीवन यापन हो सकता है
परन्तु हमें हमारी सुविधा भोगी प्रवृत्ति
कृत्रिम साधनो के अधीन कर देती है
जो लोग संन्यास की ओर
अग्रसर होने की ईच्छा रखते हो
उन्हें कृत्रिम साधनो से जुड़े
अभावो में रहने का अभ्यास करना चाहिए ।
आश्चर्य तब होता है
जब संन्यास मार्ग से जुड़े कुछ व्यक्ति
कृत्रिम साधनो के बिना
अपना नियमित जीवन व्यतीत करने में
असमर्थ हो जाते है ।
कृत्रिम साधनो के बिना
जीवन यापन करने के लिए
व्यक्ति में वास्तविक वैराग्य की
भावना होनी आवश्यक है
वास्तविक वैराग्य
संतोष और अपरिग्रह के व्रत के पालन
किये जाने से ही संभव है
व्यक्ति कितने ही बड़े व्रत कर ले
दिखने में सामान्य व्रत नहीं कर सकता है
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