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Monday, October 26, 2015

शरद पूर्णिमा की सार्थकता

शारदेय नवरात्रि के पश्चात आने वाली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है इस दिन खुले आसमान के नीचे खीर बना कर उसे चंद्र किरणों में रखा जाता है रात को चंद्र किरणों के माध्यम से वर्षित सुधा बूंदों को क्षीर पात्र में एकत्र होने के बाद उसे ग्रहण किया जाता है परन्तु इसका तार्किक अर्थ क्या है ?इसका समझना आवश्यक है शारदेय नवरात्रि में शक्ति साधना की उष्णता को शांत किया जाना आवश्यक है खीर जो दूध चावल मेवे से बनती है उसका ओषधीय महत्व होता है वह शक्ति जिसमे उष्णता हो कभी भी किसी का कल्याण नहीं करती है उसके रचनात्मक दिशा देने के लिए उसे आप्त और सौम्य पुरुषो का सान्निध्य चाहिए ।उष्णता से युक्त शक्ति को एकदम से शीतल किये जाने से तप से प्राप्त साधना पर प्रतिकूल पड़ सकता है शक्ति क्षय होने की संभावना विद्यमान रहती है इसलिए चद्रमा रूप आप्त एवम् शीतल और सौम्यता के देव प्रतीक की किरणों से निकली सुषमा जब शरद ऋतू में मौसम में घुल कर क्षीर में प्रविष्ट होती है तो वह खीर अमृत का रूप धारण कर लेती है हमारे तन और मन की उष्णता को शांत कर नवरात्र साधना से संचित शक्ति की उष्णता समाप्त कर उसे समुचित दिशा प्रदान कर देती है

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