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Monday, December 21, 2015

संवेदना की कथा

कथा में हो रहे धार्मिक और मार्मिक उपदेशो से 
श्रोताऔ के भाव आखो में अश्रु के माध्यम से निकल रहे थे 
कथा वाचक संत की संवेदनाये 
प्रवचनों के द्वारा मुखरित हो रही थी 
कथा होने के उपरान्त एक बूढी महिला ने 
जीर्ण शीर्ण वस्त्रो से रखी अपनी पोटली में से
 महाराज को भाव स्वरूप ५०० रूपये की राशि भेट की 
जो उन्होंने चुपचाप ग्रहण कर ली 
थोड़ी ही देर पश्चात एक प्रवासी भारतीय द्वारा 
भूत काल में दिए गए दान की प्रशस्ति मंच पर
 उद घोषित हो रही थी  
अपनी कीर्ति सुन कर प्रवासी भारतीय सज्जन 
फुले नहीं समा रहे थे 
उनके अहंकार की तुष्टि और पुष्टि हो रही थी 
बूढी वृध्दा लकड़ी को टेक टेक अपने पोते को कथा से लिए घर की ओर
भाव विभोर हो चली जा रही थी 
कथा वाचक संत की संवेदना  मात्र 
प्रवासी भारतीय  व्यक्ति की महादानी प्रवृत्ति को 
नमन कर रही थी  
बस मेरे मन में एक चुभता सवाल था कि
  क्या संत की उपदेशो में दर्शित संवेदना 
 कृत्रिमता  का आवरण लिए थी ? 
वृध्दा के भाव मौन होकर भी भगवत सत्ता की 
अनुभूति से मन  को अभिभूत अभी भी करा रहा है

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