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Wednesday, July 18, 2018

धार्मिक या धर्मांध

 धर्म कोई सा भी हो
 धार्मिक होना बहुत अच्छा है
परन्तु धर्मांध होना बिलकुल गलत है 
धार्मिक व्यक्ति उदार सहिष्णु 
उदार मना होता है 
जबकि धर्मांध मात्र 
अपने धर्म को ही श्रेष्ठ समझता है 
दुसरो के धर्म को
 हेय  और निकृष्ट समझता  है 
धर्मांध व्यक्ति के मस्तिष्क की स्थिति
 उस कक्ष की तरह होती है 
जिसमे मात्र एक ही दरवाजा होता है 
हवा और प्रकाश के आने जाने के लिए कोई खिड़किया उजालदान नहीं होते है 
जिस प्रकार से बंद कक्ष में 
ऑक्सीज़न की कमी से घुटन सी होती है 
उसी प्रकार धर्मांध व्यक्ति का 
मस्तिष्क जीवन के संजीवनी 
प्रदान करने वाले चिंतन के अमृत से 
वंचित रह जाता है
धार्मिक व्यक्ति अपने धर्म को 
अच्छा मानने के अतिरिक्त 
प्रत्येक धर्म के 
सकारात्मक पक्ष को महत्व देता है 
उसके चिंतन के झरोखो से
 निरंतर ताजे विचारो की प्राण वायु 
आंतरिक चेतना की
 अभिसिंचित करती  रहती है 
धर्मांध व्यक्ति क्रूर हो सकता है 
जबकि धार्मिक व्यक्ति 
संवेदना  से भरपूर होता है 
धार्मिक व्यक्ति कला साहित्य संगीत का 
मर्मज्ञ  होता है प्रगतिशील होना
 उसकी पहचान होती है 
इसलिए जो व्यक्ति धार्मिक होते है 
वे निरंतर प्रगति पथ पर उन्मुख रहते है
इसलिए धार्मिक बनो धर्मांध नहीं 
 

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