मित्र वह जो रक्त के सम्बन्ध से परे हो
मित्र वह है जिसकी आँखों में आंसू
मित्र के लिए भरे हो
मित्र वह जो कड़वा बोले पर साथ हो
श्री कृष्ण सुदामा हो अर्जुन पार्थ हो
मित्रता एक पर्व नहीं पूरा युग है
जीवन की संवेदना है प्रीती की भूख है
मित्रता मित्र की भीतर की वेदना जानती है
शब्दों से परे अनुभूतियों को पहचानती है
मित्र वासुदेव का रहा नन्द है
मित्रता कुदरत से दोस्ती का छंद है
मित्र भोले शंकर महादेव है
मित्रता पारदर्शी होती सदैव है
मित्र भाव धारण किया तो धर्म है
मित्रता सक्रियता रहे तो कर्म है
मित्रता में न होता कोई हिसाब है
मित्र होती सृजना सच्ची किताब है
मित्र पवित्र होता बंधन है
मित्र माथे का होता चन्दन है
मित्रता एक प्यास है तो मित्र तृप्ति है
जैसे वेद ऋचाएं उपनिषद की सूक्ति है
मित्रता एक जागरण है आव्हान है
कान्हा की राधा है कृष्ण का गुणगान है
मित्रता एक रस है तो मित्र प्रियतम है
मीरा की भक्ति है ह्रदय की चितवन है
मित्रता दया है कारुण्य है
मित्रता की छाया है तो स्वर्ग भी अरण्य है
मित्र मरूथल में मिल जाए तो जल है
मित्रता विहीन जीवन रहा दल दल है
मित्रता की जाती है न वर्ण है
मित्रता के लिए जान भी दे देता कर्ण है
मित्र ने ही मित्र का घाव भरा है
मित्रता से पर्यावरण है हरी धरा है
मित्रता पर्वत है नदिया की धारा है
सागर में मिलकर नदिया ने भी दिल हारा है
मित्रता दशरथ है जटायु है
मित्रता से बल पर भी बढ़ जाती आयु है
मित्रता निभायी तो राम है सुग्रीव है
मित्रता इंसानियत की रही नीव है
मित्र जीवन के सही पथ है
वनवास में मिला मित्र तो चित्र रथ है
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