श्री कृष्ण जन्माष्ठमी पर
श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व का दर्शन करना आवश्यक है
श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व बहु आयामी है
प्रश्न यह है कि
हम उन्हें किस रूप में देखना चाहते है
श्रीकृष्ण जब गोकुल में गाये चराते थे
तब पशु पालक थे
श्रीकृष्ण जब रथ के सारथी थे
तब वे कुशल चालक थे
श्री कृष्ण जब बासुरी बजाते थे
तब वे संगीतकार थे
वे जब छंद के रूप गीता का उपदेश कर रहे थे
तब गीतकार थे
जब ध्यान मग्न हो जाते थे
तब वे योगी थे
निर्धन मित्र सुदामा को सहायता पहुंचाते थे
तब परम मित्र थे
वे किंकर्तव्य विमूढ़ अर्जुन के भ्रम दूर कर रहे थे
तब मार्ग दर्शक थे
वे रण योध्दा थे ,ज्ञान के पुरोधा थे,
सम्मोहन से मोहन थे
नीतिज्ञ और प्रेम के प्रतीक थे
माता पिता को बंधनो से मुक्त किया
तब वे पुत्र थे
गुरु पुत्रो को वरुण लोक से मुक्त करवा कर लाये
तब सच्चे शिष्य थे
वनवासी पांडवो को वन में भेट कर
सहायता करते थे
तब वे सज्जनो के सहायक थे
द्वारकाधीश थे
तब समृध्दि और शांति के नायक थे
उन्होंने पतित नारिया का उध्दार कर
समाज सुधारक कार्य किया
सामान्य मनुष्य की तरह
प्रतिकुलताओ में जीकर
संघर्ष का सन्देश दिया
उन्होंने यथार्थ को स्वीकारा
समय पूरा होने पर मृत्यु का वरण किया
उनके व्यक्तित्व कर आज भी
हमें नवीन दिशाए मिलती है
मन का नैराश्य दूर होता है
नित नवीन आशाये खिलती है
श्री कृष्ण एक इतिहास नहीं
वर्तमान में मिलती प्रेरणा नव है
श्रीकृष्ण मात्र प्रतिमा नहीं
आध्यात्मिक अनुभव है
उनके व्यक्तित्व की विशालता
की अनुभूति हमें रोमांचित कर देती है
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है उनकी याद
भावनाये गोपियों से निखरती है
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