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Monday, September 3, 2018

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व

श्री कृष्ण जन्माष्ठमी पर 
श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व का दर्शन करना आवश्यक है 
श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व बहु आयामी है
 प्रश्न यह है कि 
 हम उन्हें किस रूप में देखना चाहते है
श्रीकृष्ण जब गोकुल में गाये चराते थे 
तब पशु पालक थे 
श्रीकृष्ण जब रथ के सारथी थे 
 तब वे कुशल चालक थे 
श्री कृष्ण जब बासुरी बजाते थे 
तब वे संगीतकार थे 
वे जब छंद के रूप गीता का उपदेश कर रहे थे 
तब गीतकार  थे
जब ध्यान मग्न हो जाते थे
 तब वे योगी थे 
निर्धन मित्र सुदामा को सहायता पहुंचाते थे 
तब परम मित्र थे 
वे किंकर्तव्य विमूढ़ अर्जुन के भ्रम दूर कर रहे थे 
तब मार्ग दर्शक थे 
वे रण योध्दा थे ,ज्ञान के पुरोधा थे,
 सम्मोहन से मोहन थे 
नीतिज्ञ और प्रेम के प्रतीक थे
माता पिता को बंधनो से मुक्त किया
 तब वे पुत्र थे 
गुरु पुत्रो को वरुण लोक से मुक्त करवा कर लाये 
तब सच्चे शिष्य थे 
वनवासी पांडवो को वन में भेट कर 
सहायता करते थे 
तब वे सज्जनो के सहायक थे 
द्वारकाधीश थे 
तब समृध्दि और शांति के नायक थे 
उन्होंने पतित नारिया का उध्दार कर 
समाज सुधारक कार्य किया 
सामान्य मनुष्य की तरह 
प्रतिकुलताओ में जीकर 
संघर्ष का सन्देश दिया 
उन्होंने यथार्थ को स्वीकारा 
समय पूरा होने पर मृत्यु का वरण  किया
उनके व्यक्तित्व कर आज भी 
हमें नवीन दिशाए मिलती है 
मन का नैराश्य दूर होता है
 नित नवीन आशाये खिलती है 
श्री कृष्ण एक इतिहास नहीं
 वर्तमान में मिलती प्रेरणा नव है 
श्रीकृष्ण मात्र प्रतिमा नहीं 
आध्यात्मिक अनुभव है
उनके व्यक्तित्व की विशालता 
की अनुभूति हमें रोमांचित कर देती है 
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है उनकी याद 
भावनाये गोपियों से निखरती है 
 


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