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Saturday, April 6, 2019

बेटी में सपना साकार रहा

न मानव के अधिकार रहे

न करुणा पावन प्यार रहा

मानव मानव से दुखी रहा

और हृदयविहीन व्यापार रहा

मन के भीतर न ख़ुशी रही

नहीं खुशिया का श्रृंगार रहा

आंसू अविरल है नयन बहे

सुख सपनो का संसार ढहा

दुःख से धरती माँ सिसक रही

जन अपमानित मन चीत्कार रहा

दीन दुर्बल को यहाँ चुन चुन कर

शव क्षत विक्षत होता संहार रहा

हम दिवस मनाते अधिकारो के

हर पल हमको धिक्कार रहा

बीता जीवन अंधियारे में

और उजियारा उनके द्वार रहा

ढोता बचपन है बस्तों को

नाजुक कंधो पर भार रहा

बेटो में वत्सलता बाँट रहे

बेटी में सपना साकार रहा 


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